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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति


मनुष्यके ज्ञानकी वृद्धि करने और संसारके ज्ञानको आगे बढ़ानेवाली शक्तियोंमें मनुष्यके मस्तिष्ककी स्मरणशक्ति महत्त्वपूर्ण है। अन्य जीवोंकी अपेक्षा मनुष्यमें स्मरणशक्ति विशेष विकसित रूपमें पायी जाती है। ज्ञानभण्डारको बढ़ानेमें इसका प्रमुख स्थान है। लेखकों, इतिहासकारों, वक्ताओं, ऋषि-मुनियोंका ज्ञान उनकी स्मृतिमें संचित रहता है। जब पुस्तकें नहीं थीं, तो अध्यापकोंका मस्तिष्क ही पुस्तकें थीं और उनकी स्मरणशक्तिके कारण ही उनका इतना मूल्य था। जो कुछ वे उच्चारण करते थे, उसे शिष्यको अपनी स्मृतिमें धारण करना पड़ता था। पुस्तकोंके प्रचारसे स्मरणशक्ति निर्बल हो गयी है, फिर भी अनेक व्यक्तियोंमें अद्भुत स्मरणशक्ति पायी गयी है और आज भी पायी जाती है।

अंग्रेजी भाषामें लार्ड वायरन, मैकाले अपनी स्मरणशक्तिके कारण बहुत प्रसिद्ध रहे हैं। लार्ड मैकालेके मस्तिष्ककी तुलना ब्रिट्रिश म्यूजियम लाइब्रेरी, लंदनके विशाल पुस्तकालयसे की गयी है। कहते हैं कि जिस विषयपर उन्हें आवश्यकता होती थी, उसीके सम्बन्धमें असीमित ज्ञान-निर्झर उनमेंसे बह निकलता था। उपन्यास, कहानी, भ्रमण या इतिहास किसी भी विषयपर वे धाराप्रवाह बोल सकते थे। वे जो भी पुस्तक पढ़ते थे, उन्हें शब्द-शब्द स्मरण रह जाता था। मिल्टन 'पैराडाइज लॉस्ट' जैसा महाकाव्य उन्होंने एक रात्रिमे याद कर डाला था। कवि बायरनके विषयमें कहा जाता है कि उन्होंने जितनी भी कविताएँ लिखी थीं, जीवनके अन्तिम क्षणोतक कण्ठस्थ थीं। लार्ड बेकनकी स्मरणशक्ति इतनी तीन थी कि अपने लिखे हुए निबन्ध वे शब्द-शब्द बोल देते थे। अमेरिकाके प्रसिद्ध वनस्पतिविशेषज्ञ असाग्रेकी स्मरणशक्ति इतनी तीव्र थी कि उन्हें २५००० वनस्पतियोंके नाम स्मरण थे। अमेरिकाके भूतपूर्व राष्ट्रपति राजनीतिज्ञ थेडोर रूजवेल्ट जिससे एक बार मिलते थे, आयुभर उसे नहीं भूलते थे। कहते हैं, एक बार जापानमें वह एक सज्जनसे पंद्रह वर्ष बाद बाजारमें अकस्मात् मिले तो देखते ही उनका नाम पुकारा और बातचीत प्रारम्भ कर दी और आपको आश्चर्य होगा कि वार्तालापका विषय पंद्रह वर्ष पूर्वका विवाद था। दक्षिणी अफ्रीकाके भूतपूर्व प्रधान मन्त्री जनरल स्मट्सको अपने पुस्तकालयकी प्रत्येक पुस्तकका प्रत्येक शब्द, पृष्ठ और परिच्छेद स्मरण था और यह बता सकते थे कि अमुक पुस्तक अमुक अलमारीमें रखी है और अमुक पृष्ठपर अमुक शब्द लिखे हैं। भारतके क्रान्तिकारी नेता श्रीहरदयालकी अद्भुत स्मरणशक्तिके विषयमें अनेक कथाएँ प्रसिद्ध हैं। आज भी वाराणसीके महामहोपाध्याय डा. श्रीगोपीनाथ कविराजको सहस्रों ग्रन्थ तथा उनके विषय याद हैं। उनके आस-पास विभिन्न विषयोंके डाक्ट्रेट-प्राप्त करनेके प्रत्याशी विद्वानों की भीड़ लगी रहती है।

उपर्युक्त कुछ उदाहरणोंसे यह स्पष्ट है कि यदि प्रयत्न, अभ्यास और श्रम किया जाय, तो आज भी हम अपनी स्मरणशक्तिको बढ़ा सकते हैं। अन्य उच्च शक्तियोंकी तरह प्रत्येक व्यक्तिमें स्मरणशक्ति विद्यमान है।

आपने यह गलत धारणा बना ली है कि आपकी स्मृतिशक्ति निर्बल है। स्मरण रखना एक प्रकारका मानसिक मार्ग है, जिसे टहलने, बातचीत करने, भोजन करने, ध्वनि पहचाननेकी ही भांति पृथक्-पृथक् स्पष्ट करना पड़ता है। ये सब कार्य आपने बचपनमें सीखे थे और उपर्युक्त सब क्रियाएँ आप स्वतः पूर्ण कर सकते है। आपके चेतन मस्तिष्कको इन क्रियाओंके करनेमें कोई विशेष श्रम नहीं करना पड़ता। मानसपटलपर स्वतः ही मानस-चित्र बनते जाते हैं और अतीत मूर्तिमान्होता रहता है। स्मृति एक प्रकारकी आदत है और इसके लिये श्रम और अभ्यास की आवश्यकता है। कोई भी चेष्टा करनेसे अपनी स्मरणशक्तिका विकास कर सकता है।

हम बातें, वस्तुएँ व्यक्तियोंको क्यों भूलते हैं? कारण यह है कि हम नवीन ज्ञानको पुराने संचित ज्ञानसे नहीं जोड़ते। अलग-अलग पड़े हुए ज्ञान या अनुभवकण एकदम भूल जाते हैं, पर यदि हम नये अनुभवों या ज्ञानको स्मृति-कोषमें संचित पुराने ज्ञानसे संयुक्त कर दें, तो नयी बातें अटकी रह जाती हैं और भूलती नहीं। केवल हमें संयुक्तीकरण या पुराने ज्ञानसे नया ज्ञान संयुक्त करनेकी आवश्यकता है।

विलियम जेम्स लिखते है, 'मानसिक क्षेत्रमें जितना भी पुराने ज्ञानसे नया ज्ञान मिलाकर, संयुक्त कर, नयी बातोंको पुरानी बातोंसे मिलाकर रखा जायगा, उतना ही हम नयी बातोंको याद रख सकेंगे। प्रत्येक पुरानी बातसे संयुक्त होकर नयी बात याद रहती है। पुरानी बात एक हुक या कड़ीकी तरह है, जिसमें नयी बात अटक जाती है। जैसे कटुँवेसे मछली अटककर ऊपर आ जाती है, उसी प्रकार पुराने संचित विचारोंसे बँधी हुई नयी जानकारी हमें याद रहती है।'

अतः नयी वस्तुओं, विचारों, व्यक्तियोंको अपने मस्तिष्कमें मौजूद संचित ज्ञान-राशिसे संयुक्त करते रहिये। आदमीको उसके पेशे या स्थानसे मिलाकर याद रख सकते हैं। एक ही प्रकारके विचारोंको साथ-साथ संयुक्त कर याद रखा जा सकता है।

जिस वस्तु या विचारको याद रखना है, उसे बढ़ा-चढ़ाकर मनमें विकसित दीर्घ मानस-चित्र बनाकर देखिये। बार-बार लम्बे मानस-चित्र चेतनाके स्तरपर रखनेसे वस्तुएँ और विचार याद रहते हैं। मानस-चित्रोंके निर्माणका अभ्यास निरन्तर करते रहिये।

स्मृतिको बढ़ानेका एक तत्त्व क्रिया (एक्शन) है। जो वस्तुएँ हिलती रहती हैं, हम उनकी ओर अधिक आकृष्ट हो जाते हैं। थियेटरमें जनता हिलने-डुलने या तेजीसे क्रियाएँ करनेवाले अभिनेताके प्रति अधिक आकृष्ट होती है। यदि आप अपने विचारोंको क्रियाका रूप दे डालें, तो बात जल्दी याद रहेगी। यही कारण है कि जो बात बार-बार उच्चारण करनेसे याद नहीं रहती, वह बार-बार लिखनेसे याद हो जाती है। कारण, जितनी देरतक हम कोई बात लिखते है, उतनी देरतक वही विचार हमारे मानसिक नेत्रोंके सम्मुख रहता है। मनमें निरन्तर क्रिया चलती रहती है।

कार्य जितना ही तेज या चकित करनेवाला होता है, उतना ही अधिक स्मरण रहता है। यदि आपके साथ कोई खूनी घटना हो जाय, तो सदैव याद रहती है। जिस बातमें हमारा जितना अधिक ध्यान या रुचि रहती है, उतनी ही वह स्मरण रहती है। अतः जिन कठिन विषयोंको आप याद रखना चाहते हैं, उनके प्रति अपनी रुचि-वृद्धि कीजिये। दिलचस्पी बढ़ानेसे ध्यान (Attention) जमता है और ध्यानसे बातें याद रहने लगती है। जितना अधिक ध्यान लगेगा, उतनी अच्छी एकाग्रता होगी। अतः धीरे-धीर अपने मनको एकाग्र करनेका सतत अभ्यास करना चाहिये। जिस बातको वास्तवमें हम याद रखना चाहते हैं, एकाग्रता, ध्यान और दिलचस्पी लेकर अवश्य ही हम उसे स्मरण रख सकते हैं। हमें अपने स्मृतिकोषसे यह चुनना चाहिये कि वास्तवमें हम क्या याद रखना चाहते हैं। जिन विचारोंके आप चुनें, केवल उन्हींपर मनको एकाग्र करें।

स्मृति भिन्न-भिन्न प्रकारकी होती है। कोई व्यक्ति कविताकी पंक्तियाँ अधिक याद रख सकता है, तो दूसरा बिसातीकी दुकानकी सैकड़ों छोटी-छोटी वस्तुएँ तीसरा पंसारीकी दूकानके मसाले, दवाइयाँ इत्यादि। आप एक कागजपर उन वस्तुओंको लिखिये, जिन्हें एक सभ्य संस्कृत विद्वान्को स्मरण रखना चाहिये। यदि आप डाक्टर हैं, तो दवाइयों, मानव-शरीरके हिस्सों, हड्डियों आदिको स्मरण रखना आपके लिये उत्तम रहेगा। इतिहासकारको व्यक्तियोंके नाम, सन् तिथियाँ आदि याद रखना काम देगा। इसी प्रकार अध्यापक, राजनीतिज्ञ, नेता, बैंकर या सम्पादककी भिन्न-भिन्न बातें याद रखनेसे लाभ होगा। अतः अपने कामकी बातोंकी याद रखनेमें ही ध्यानको एकाग्र कीजिये। निरन्तर अभ्यास करनेसे ये वस्तुएँ स्वतः याद होने लगेंगी।

मान लीजिये, आप विद्यार्थी है तथा आपको कोई लम्बा पाठ या इतिहासकी सामग्री स्मरण करनी है। अथवा आप वक्ता हैं और आपको भाषण देनेके लिये दस-बारह बातें याद रखनी हैं। इसमें भी आप संयुक्तीकरणकी युक्तिसे काम लें? अर्थात् एक-एक बातको पूर्व संचित तत्त्वसे जोड़कर याद करें। पहले एक बात याद करें, फिर उसीसे दूसरी जोड़कर धीरे-धीरे दोनोंको दुहरावें। फिर तीसरी जोड़कर तीनोंको क्रमानुसार दुहराएँ। इसी प्रकार धीरे-धीरे एक-एक नयी बात और जोड़ते चलें। इस प्रकार आप समूची रूपरेखा स्मरण कर लेंगे। प्रतिदिन कुछ समयके लिये पुरानी बातें दुहराते जानेसे ज्ञान विस्मृत नहीं होता। विचारोंको मजबूतीसे पकड़िये। छिछले विचारके सामने कोई मानसिक मूर्ति स्पष्ट नहीं आती। बीचमें बात याद नहीं रहती। अतः गहनतासे सोचनेकी आदत डालिये। रचनात्मक विचार संगठित-रूपसे विचार करता है और मनमें उनकी मूर्ति स्पष्ट बनाता है।

लेखकोंको अपनी स्मरणशक्ति बढ़ानेके लिये स्टीवनसन नामक अंग्रेजी लेखककी विधिसे काम लेना चाहिये। उनका मत था कि विचार मनमें आते हैं और यदि उन्हें मजबूतीसे पकड़ न लिया जाय, तो वे गायब हो जाते हैं। अतः वे हमेशा एक डायरी साथ रखते थे, जिसमें पेंसिलेसे नये विचार नोट कर लेते थे, नोट कर लेनेसे विचार विस्मृत न होते थे। कागजपर लिखे हुए नये विचार बढ़ाये जा सकते है और हमारी स्मृतिको सहायता देते हैं।

स्मरणशक्ति मनकी एक शक्ति है। प्रत्येक शक्तिको विकसित करनेका यह नियम है कि उससे अधिक-से-अधिक काम लिया जाय। जिन शक्तियोंसे काम लिया जायगा, वे ही बढ़ेगी। शेष नष्ट हो जायेंगी। कार्य करनेसे ही शक्तियाँ बनी रहती हैं, अन्यथा पंगु हो जाती है। अतः अपने मस्तिष्कसे नित्य नियमित कार्य लेते रहिये। रचना, समन्वय, संघटन, प्रेरणा देना और निर्णय करना, नये-नये विचार-कल्पनाएँ देना-ये सभी श्रेष्ठ कार्य अपने मस्तिष्कसे लेते रहिये। इनमें स्मरणशक्ति काममें आती रहेगी और आप एक कुशल व्यक्ति बने रहेंगे।

स्मरणशक्तिको विकसित करनेका निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिये। जैसे आप किसी पुस्तकके अंशको या किसी कविता, किसी पंक्तिको पढ़ लीजिये, फिर पुस्तक बंद कर मनमें धीर-धीर उन्हीं अंशोंको कहिये या उन्हीं अंशोंको लिखनेका प्रयत्न कीजिये। इस अभ्याससे स्मरणशक्ति विकसित हो जायगी। जितना अधिक ध्यान आप पुस्तकको पढ़ने, लिखने और वस्तुओंकी गहराईसे देखनेमें लगायेंगे, उतना ही उत्तम है। मस्तिष्क उतनी ही पूर्णतासे विचारोंको पकड़ेगा। अतः ध्यानपूर्वक बातोंको समझने और गुप्त मनमें क्रमानुसार सजानेका प्रयत्न किया कीजिये। क्रम तथा व्यवस्थासे अनेक विचार स्मृतिकोषमें दीर्घकालतक सजे रहते है, जब कि अव्यवस्थित रूपसे थोड़ेसे विचार भी स्मरण नहीं रहते। विचारोंको याद रखनेमें सुव्यवस्था लाभप्रद है।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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